सिंदूरी धूप

मेरे हिस्से की धूप को
मांग में तुम अपनी रख लो
कुछ रंग सिंदूरी हो जाए
फिर लौटा देना मुझको
मैं ओढ़ लूंगा तब इसको
अपनी रातों के साए पर।

टूटे-फूटे चंद ख़्वाब मेरे
पलकों पे तुम अपनी रख लो
एक हार पिरो लेना इनका
जब पांव धरें मंज़िल पे हम
वो हार चढ़ा देना मेरी
नाकामियों के सरमाए पर।

*सरमाया = पूँजी, कमाई (Wealth)

© गगन दीप

No comments:

Post a Comment