छलकते जाम

शिकवा नहीं मुझको ना अब कोई शिकायत है
क्योंकि अब किसी से कोई आस नहीं रखता मैं।

अपने ख़ैर-ख़्वाहों से मैं आज भी मिलता हूँ दिल से
लेकिन अब किसी को दिल के पास नहीं रखता मैं।

किस पे करूं यकीं यहाँ कौन चला संग उम्र भर
ख़ुद के साए पर भी अब विश्वास नहीं रखता मैं।

सूनी राहों पे अक्सर मैंने किया सफ़र तन्हा
पर सूनेपन का दिल में अहसास नहीं रखता मैं।

छू कर लबों से जाम छलकते छोड़ आया हूँ
ज़िंदगी में अब कोई भी प्यास नहीं रखता मैं।

*ख़ैर-ख़्वाह = शुभचिंतक (Well-wisher)
*तन्हा = अकेला (Alone)
*लब = होंठ (Lips)

© गगन दीप

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